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Bhagwat Geeta Shloka in Hindi – लोकप्रिय गीता श्लोक अर्थ सहित

Bhagwat Geeta Shlok: महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥


(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7) इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।


परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥



(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8) इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। 

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥



(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7) इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।


परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। 

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥


(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8) इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। 

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥



(तृतीय अध्याय, श्लोक 21) इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । 

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥


(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23) इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। 

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

 

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37) इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे, इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)


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