google.com, pub-8008239937663308, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बसंती हवा - केदारनाथ अग्रवाल| Basanti Hawa
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बसंती हवा - केदारनाथ अग्रवाल| Basanti Hawa

 हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी -अनोखी हवा हूँ।

        बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला।
        नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ।
        जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ,
       
 मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ!
जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं -
      शहर, गाँव, बस्ती,नदी, रेत, निर्जन,
        हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मैं।
        झुमाती चली मैं! हवा हूँ,हवा मै  बसंती हवा हूँ।

चढ़ी पेड़ महुआ,थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में लहर खूब मारी।
hava hoon, hava main basanti hava hoon. suno baat mere -anokhi hava hoon.


पहर दो पहर क्या,अनेकों पहर तक
        इसी में रही मैं! खड़ी देख अलसी
        लिए शीश कलसी, मुझे खूब सूझी -
        हिलाया-झुलाया गिरी पर न कलसी!
        इसी हार को पा, हिलाई न सरसों,
        झुलाई न सरसों,  हवा हूँ, 
हवा मैं बसंती हवा हूँ!

मुझे देखते हीअरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा -पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ!
केदारनाथ अग्रवाल

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