Type Here to Get Search Results !

जीवन पर 20 संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas On Life With Hindi meaning

Sanskrit Shlok: जीवन पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित – प्राचीन काल में भारतवर्ष में बोली जाने वाली भाषा संस्कृत है जिसमें अनगिनत श्लोक है जिन का अध्ययन करके व्यक्ति अपने चरित्र को और भी बलवान बना सकता है.


और जीवन यापन बेहतर बनाने में उसकी यह संस्कृत श्लोक मदद कर सकते हैं।आज हम यहां आपके सामने कुछ संस्कृत श्लोक उनके हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं और आशा यही रहेगी कि आपके जीवन में इंच लोग की मदद से कुछ बदलाव आए एवं यह जीवन पहले से सरल व शांति दायक बने। 

1. जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।
अर्थ: यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।

2. अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥
अर्थ : विश्राम लिए बिना भार वहन करना, ताप-ठंड ना देखना, सदा संतोष रखना यह तीन चीजें हमें गधे से सीखनी चाहिए।

3. मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत ।
देहशौचं च वाक्शौचं शौचं पंञ्चविधं स्मृतम्
अर्थ: मन शौच, कर्म शौच, देश शौच और वाणी शौच यह पांच प्रकार के शौच हैं।

4. जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।
अर्थ: मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।

5. जीवचक्रं भ्रमत्येवं मा धैर्यात्प्रच्युतो भव।
अर्थ: जीवन का चक्र ऐसे ही चलता है इसीलिए धैर्य ना खोए।

6. नो चेज्जातस्य वैफल्यं कास्य हानिरितिः परा।
अर्थ: जीवन की विफलता से बढ़कर क्या हानि होगी।

7. न दाक्षिण्यं न सौशील्यं न कीर्तिःनसेवा नो दया किं जीवनं ते।
अर्थ: ना दान है ना सुशीलता है ना कीर्ति है ना सेवा है ना दया है तो ऐसा जीवन क्या है?

8. यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!
अर्थ: साधु जन वही बोलते हैं जो उनके चित्र में होता है और जो उनके चित्र में होता है वही उनकी क्रिया में होता है। ऐसे साधु जन के मन वचन एवं क्रिया में समानता होती है।

9. यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसियस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।
अर्थ: वह व्यक्ति जो भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमण करता है एवं विद्वानों की सेवा करता है ऐसे व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है जैसे तेल की बूंद पानी में फैल जाती है।

10. शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !!
अर्थ: 100 लोगों में एक शूरवीर होता है, हजार लोगों में एक पंडित(विद्वान) होता है, 10000 लोगों में वक्ता होता है, लाख लोगों में एक दानी होता है।

11. न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि !व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
अर्थ: जिसे ना चोर चुरा सकता है, ना ही राजा छीन सकता है, ना ही इसे संभालना मुश्किल है, नाही भाइयों में बंटवारा हो सकता है, यह खर्च करने से भरने वाला धन विद्या है जो सर्वश्रेष्ठ है।

12. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः !नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति !!
अर्थ : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है और मित्र परिश्रम होता है क्योंकि परीक्षण करने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता।

13. सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् !वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
अर्थ: विवेक में ना रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है इसलिए बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है मां लक्ष्मी स्वयं उसका चुनाव करती है।

14. मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
अर्थ: मन ही मनुष्य के मोक्ष तथा बंधन का कारण है।

15. संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति ॥
अर्थ: संतोष के समान कोई सुख नहीं है।

16. दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च।आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्।
अर्थ: दरिद्र रोग दुख बंधन और बताएं यह आत्मा रूपी वृक्ष के अपराध का फल है जिसका उपभोग मनुष्य को करना ही पड़ता है।

17. निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा।विषं भवतु वा माऽभूत् फणटोपो भयङ्करः।
अर्थ: सांप जहरीला ना होने पर भी फन जरूर उठाता है, अगर वह ऐसा भी ना करें तो लोग उसकी रीड को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे।

18. अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते !अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः !!
अर्थ: किसी स्थान पर बिन बुलाए चले जाना, बिना पूछे बोलते रहना, किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना मूर्ख लोगों के लक्षण हैं।

19. षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!
अर्थ: व्यक्ति के बर्बाद होने के छह लक्षण है- नींद, तद्रा, क्रोध, आलस्य एवं काम को टालने की आदत।

20. विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन !स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!
अर्थ: राजा और विद्वान में कभी तुलना नहीं हो सकती क्योंकि राजा अपने राज्य में पूजा जाता है वही विद्वान जहां जाता है वहां पूजनीय है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Learn Digital Marketing