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श्री गंगा चालीसा हिन्दी अर्थ सहित || Full Ganga Chalisha with Hindi Meaning

गंगा जी की आराधना के लिए निम्न गंगा चालीसा (Ganga Chalisa in Hindi) का पाठ करना चाहिए।

~श्री गंगा चालीसा-Ganga chalisa- 'जय जग जननि अघ खानी' ~

 

दोहा

जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग ।

जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥

अर्थ: समस्त जगत में पवित्र मानी जाने वाली, देवताओं के लिए भी पूजनीय हे माँ गंगा आपकी जय हो, जय हो। आपकी बहती और उछलती हुई तेज धाराएं अद्वीतीय नजारा बनाती हैं, भगवान शिव की जटाओं में निवास करने वाली हे गंगा मैया आपकी जय हो।


चौपाई

जय जग जननि अघ खानी, आनन्द करनि गंग महरानी ।

जय भागीरथि सुरसरि माता, कलिमल मूल दलनि विखयाता ।।

अर्थ: अपने भक्तों को पापों से मुक्ति दिलाकार, सुख प्रदान करने वाली, नदियों में महारानी हे गंगा मैया आपकी जय हो, महारानी माता आपकी जय हो।  हे भागीरथी देवलोक में प्रवाहित होने वाली जगत का पालन करने वाली आपकी जय हो, आप ही इस कलयुग में समस्त पापों को धोने के लिए विख्यात (प्रसिद्ध) हैं।

जय जय जय हनु सुता अघ अननी, भीषम की माता जग जननी ।

धवल कमल दल मम तनु साजे, लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे ।।

अर्थ: हे जहानु पुत्री पापों का हरण करने वाली, भीष्म पितामह को जन्म देने वाली जग जननी माता आपकी जय हो, जय हो।  हे गंगा मैया आप श्वेत कमल की पंखुड़ियों के समान सुंदर हैं, आपकी सुंदरता को देखकर तो शरद ऋतु के सैंकड़ों चंद्रमा भी शरमां जांए।

वाहन मकर विमल शुचि सोहै, अमिय कलश कर लखि मन मोहै ।

जडित रत्न कंचन आभूषण, हिय मणि हार, हरणितम दूषण ।।

अर्थ: आपका वाहन पवित्र मगरमच्छ भी आपकी शोभा को बढा रहा है, तो वहीं आपके हाथों में अमृत-कलश भी आकर्षित करता है। आपके सोने के आभूषणों में कीमती रत्न जुड़े हुए हैं व आपके वक्षस्थल पर मणियों का हार भी दाग व दोष रहित है।

जग पावनि त्रय ताप नसावनि, तरल तरंग तंग मन भावनि ।

जो गणपति अति पूज्य प्रधाना, तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना ।।

ब्रह्‌म कमण्डल वासिनी देवी श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ।

साठि सहत्र सगर सुत तारयो, गंगा सागर तीरथ धारयो ।।

अर्थ: हे समस्त जगत में पवित्र व प्राणि मात्र के तीनों तापों (आधिभौतिक- सांसारिक वस्तुओं/जीवों से प्राप्त कष्ट, आधिदैविक- दैविक शक्तियों द्वारा दिया गया कष्ट या पूर्व जन्म में किए गये कर्मों से प्राप्त कष्ट एवं आध्यात्मिक- अज्ञानजनित कष्ट) का नास करने वाली। आपकी उछलती हुई तेज प्रवाह से बहती लहरें भी मनभावनी हैं। जिस प्रकाश देवताओं में सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा होती है, उसी प्रकार हे गंगा मैया सारे तीर्थ स्थलों में सबसे पहले आपके स्नान की मान्यता है। हे देवी आप भगवान श्री ब्रह्मा के कमंडल में वास करने वाली हैं। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के पैर धोकर जो पानी एकत्र किया आप उसी का रुप हो। आपने ही राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया और गंगा सागर तीर्थ को अस्तित्व में लायीं।

अगम तरंग उठयो मन भावन, लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन ।

तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट, धरयौ मातु पुनि काशी करवट ।।

अर्थ: आपकी आगे की और उठती हुई तरंगे मन को मोह लेती हैं। आपको देखकर ही हरिद्वार तीर्थ सुहावना लगता है। आपने ही प्रयाग को अक्षयवट (प्रयाग स्थित प्राचीन बरगद का पेड़ जिसके बारे में मान्यता है कि यह कभी नष्ट नहीं होगा) के समान अमर व तीर्थों का राजा होने के गौरव प्रदान किया, फिर आपने काशी की और रुख किया। कहने का अभिप्राय है गंगा जी के किनारे पर अनेक तीर्थ स्थलों का विकास हुआ।

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी, तारणि अमित पितृ पद पीढी ।

भागीरथ तप कियो अपारा, दियो ब्रह्‌म तब सुरसरि धारा ।।

अर्थ: देवता भी आपको स्वर्ग की सीढ़ी मानते हैं, हे गंगा मैया आप धन्य हैं। आप पीढ़ियों से असंतुष्ट पितरों की आत्मा को शांत कर उन्हें मुक्ति दिलाती हैं। भागीरथ ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की तब जाकर उन्होंनें आपकी धारा को उनके साथ भेजा।

जब जग जननी चल्यो लहराई, शंभु जटा महं रह्‌यो समाई ।

वर्ष पर्यन्त गंग महरानी, रहीं शंभु के जटा भुलानी ।।

मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो, तब इक बूंद जटा से पायो ।

ताते मातु भई त्रय धारा, मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा ।।

अर्थ: हे जग जननी जब आप अपने वेग से चली तो आपके वेग को सहना पृथ्वी के बस का नहीं था, इसलिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में आपको समा लिया। उस समय अहंकार भी आ गया था क्योंकि आप स्वर्ग को छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए हे नदियों की महारानी गंगा आपको एक साल तक भगवान शिव की जटाओं में उलझे रहना पड़ा। भागीरथी ने फिर से भगवान शिव की स्तुति की जिसके बाद भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर आपके वेग को कम करते हुए आपको अपनी जटाओं से मुक्त किया। भगवान शिव की जटाओं से मुक्त होने के बाद गंगा माता वहां से तीन धारा में बह चली जो मृत्यु लोक, आकाश व पाताल लोक की ओर प्रवाहित हुई।

 


गई पाताल प्रभावति नामा, मन्दाकिनी गई गगन ललामा ।

मृत्यु लोक जाह्‌नवी सुहावनि, कलिमल हरणि अगम जग पावनि ।।

अर्थ: पाताल लोक में आपका नाम प्रभावती तो आकाश में मंदाकिनी है। मृत्यु लोक यानि पृथ्वी पर जाह्नवी के रुप में जानी गई, यहां आप कलयुग में विश्व को पापों से मुक्त कर पवित्र करती हो।

धनि मइया तव महिमा भारी, धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ।

मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी, धनि सुरसरित सकल भयनासिनी ।।

अर्थ: हे मैया आपकी महिमा अपरमपार हैं, आप धन्य हैं जो इस कलियुग में धर्म की धुरी बनकर पापों का विनाश करती हो। हे पाताल में प्रवाहित होने वाली प्रभावती व आकाश में बहने वाली मंदाकिनी माता आप धन्य हैं। सारे डरों को नष्ट करने वाली देव नदी गंगा आप धन्य हैं।

पान करत निर्मल गंगाजल, पावत मन इच्छित अनन्त फल ।

पूरब जन्म पुण्य जब जागत, तबहिं ध्यान गंगा महं लागत ।।

जई पगु सुरसरि हेतु उठावहिं, तइ जगि अश्वमेध फल पावहिं ।

महा पतित जिन काहु न तारे, तिन तारे इक नाम तिहारे ।।

अर्थ: आपके पवित्र जल का पान करते ही प्राणी मात्र की हर इच्छा पूरी होती है। यदि मनुष्य ने पूर्वजन्म में कोई पुण्य किया हो तो ही उसका ध्यान आपकी भक्ति में लगता है। हे माता आपकी और रखा गया एक एक कदम अश्वमेघ यज्ञ के समान फलदायक होता है। जिन महापापियों को कहीं से भी मुक्ति नहीं मिली ऐसे महापापी भी आपके नाम के सहारे अमरता को पा गए।

शत योजनहू से जो ध्यावहिं, निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं ।

नाम भजत अगणित अघ नाशै, विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ।।

अर्थ: सैंकड़ों योजन दूरी से भी जो आपका ध्यान लगाता है उसकी भगवान विष्णु के लोक में जगह निश्चित है अर्थात उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है, उसे मोक्ष मिलता है। हे गंगा मैया आपमें इतनी शक्ति है कि आपके नाम का भजन करने से, अनगिनत पापों का नाश हो जाता है। अज्ञानता का अंधेरा दूर होकर पवित्र ज्ञान व बल बुद्धि से मन प्रकाशित हो जाता है।

जिमि धन मूल धर्म अरु दाना, धर्म मूल गंगाजल पाना ।

तव गुण गुणन करत सुख भाजत, गृह गृह सम्पत्ति सुमति विराजत ।।

अर्थ: जिसके लिए धर्म और दान ही धन संपत्ति हैं अर्थात जो धर्म व दान में आस्था रखते हैं, उनके लिए गंगाजल का पान भी धर्म के समान है। आपके पवित्र जल को ग्रहण करके जब आपका गुणगान किया जाता है तो सारे दुख दूर भागने लगते हैं, और घर-घर में संपत्ति व अच्छी बुद्धि विराजमान होती हैं।

गंगहिं नेम सहित निज ध्यावत, दुर्जनहूं सज्जन पद पावत ।

बुद्धिहीन विद्या बल पावै, रोगी रोग मुक्त ह्‌वै जावै ।।

गंगा गंगा जो नर कहहीं, भूखे नंगे कबहूं न रहहीं ।

निकसत की मुख गंगा माई, श्रवण दाबि यम चलहिं पराई ।।

अर्थ: गंगा को नियम सहित जो ध्याता है अर्थात ध्यान लगाता है तो बूरे से बूरे आदमी को भी अच्छा पद मिलता है। बुद्धिहीन विद्या बल को पा लेते हैं, रोगी रोग से मुक्त हो जाते हैं।  गंगा के नाम को जो लोग जपते रहते हैं वे कभी भी भूखे या वस्त्रहीन नहीं रहते। यदि अंतिम समय में भी यदि किसी के मुख से गंगा माई निकलता है तो यमराज भी अपने कान दबोच कर वहां से परे चला जाते है।

महां अधिन अधमन कहं तारें, भए नर्क के बन्द किवारे ।

जो नर जपै गंग शत नामा, सकल सिद्ध पूरण ह्‌वै कामा ।।

अर्थ: जिन अधम पापियों के लिए नरक तक के दरवाजे बंद थे ऐसे-ऐसे पापी भी आपके सहारे भवसागर से पार हो गए अर्थात मोक्ष पा गए। जिसने भी गंगा के सौ नामों को जपा, उसके सारे काम सारी सिद्धियां पूरी हुई हैं। 

सब सुख भोग परम पद पावहिं, आवागमन रहित ह्‌वै जावहिं ।

धनि मइया सुरसरि सुखदैनी, धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ।।

अर्थ: उन्होंनें सारे सुख भोग कर परम पद को पाया व जीवन मृत्यु के चक्कर से उसका पिछा छूट जाता है वह आवागमन रहित हो जाता है।  सुख दात्री गंगा मैया आप अन्य हैं हे तीरथ राज त्रिवेणी आप धन्य हैं।

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा, सुन्दरदास गंगा कर दासा ।

जो यह पढ़ै गंगा चालीसा, मिलै भक्ति अविरल वागीसा ।।

 

अर्थ: दुर्वासा ऋषि के ककरा ग्राम का निवासी सुंदर दास भी गंगा मैया आपका दास है। जो भी इस गंगा चालीसा का पाठ करता है उसे आपकी भक्ति प्राप्त होती है व निरंतर आपका आशीर्वचन मिलता रहता है।

 

दोहा

नित नव सुख सम्पत्ति लहैं, धरैं, गंग का ध्यान ।

अन्त समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥

अर्थ: जो गंगा मैया का ध्यान धरते हैं उन्हें हर रोज नई खुशियां व संपत्ती प्राप्त होती है। वह अंतिम समय में आदरपूर्वक विमान में बैठकर देवलोक में निवास करता है।

सम्वत्‌ भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र ।

पूण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र ॥

अर्थ: यह चालीसा को भक्तों के कल्याण के लिए संवत भुज नभ दिशि (इसका अर्थ यानि वर्ष सपष्ट नहीं है, लेकिन एक जगह पर विक्रमी संवत 2010 माना गया है) में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को संपन्न हुआ इस दिन भगवान श्री राम का जन्मदिन मनाया जाता है इसलिए इसे राम नवमी भी कहा जाता है। अत: संवत का वर्ष जो भी रहा हो लेकिन माह चैत्र और तिथि शुक्ल पक्ष की नवमी को इस चालीसा के लिखने का कार्य पूरा हुआ यह निश्चित है।

॥ इति श्री गंगा चालीसा समाप्त॥ Ganga Chalisha in Hindi Ends (Jai Ganga Mata) ॥

 

~श्री गंगा चालीसा-Ganga chalisha- 'जय जग जननि अघ खानी' ~

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